-->
Ads

Recently Lyrics Updated

कलयुग की नारी लिरिक्स

कलयुग की नारी लिरिक्स
कलयुग की नारी लिरिक्स

Rap and Lyrics by - LUCKE
Music and Mix Mastered by - Mitwan Soni
Hook composition-Nitin Akhand

कलयुग की नारी लिरिक्स

सुनो कहानी साथ मेरे तुम
इस कलयुग की नारी की
दिखावे की इस दुनिया में
परवाह इसे दिखावे की
झूठी दुनिया में उलझी
असलियत से दूर गई।
आधुनिक दुनिया की नारी
संस्कृति ही भूल गई।
हे कलयुग की नारी
तुम कैसे इतना बदल गई
कैसे इतना बदल गई
कैसे इतना बदल गई

क्या हो रहा है आस पास
और कैसी दुनिया सारी है।
नशे पत्ते में लिप्त बैठी
कैसी आज की नारी है।।
आधुनिक दुनिया की
नारी सोचे सब पर भारी है।
पर असल में ये सोचे तो
ये नारी की लाचारी है।।

कई बार होता है प्रेम
इन्हें कई बार टूट फिर जाता है।
अपनों का रिश्ता छोड़ के
रिश्ता गैरों का क्यूँ भाता है।।
कुछ नारी है जो आजकल
छोटे वस्त्रों में आती है।
लोकप्रिय बनने को
वस्त्रो से अंग दिखाती है।।

अब ऐसी नारी होती है
जो मर्यादा ना रखती है।
पढ़ने लिखने के नाम पर
छल घरवालों से करती है।।
कर्तव्यों को जो भूल के बैठी
कुमार्ग पर जाती है।
कम उम्र की लड़कीयाँ
बचपन में इश्क़ लड़ाती है।।

संबंध बनाती कई बार
संस्कृति से भी दूर गई।
जो गहना होती स्त्री का
वो लाज शर्म भी भूल गई।।
भूल गई वो मर्यादा
जो एक स्त्री में होती है।
मात पिता को दुख देके
किसी ग़ैर के ख़ातिर रोती है।।

ये जाने ना पहचाने ना
इंसान के रंग रूप को।
प्रेम करती उनको
जिनको केवल तन की भूख हो।

मन से किसको प्रेम है
और तन की किसको आशा।
कौन करता है प्रेम इन्हें
और कौन करे छलावा।।
सही ग़लत में अंतर भी
अब नारी को है ज्ञात नहीं।
जैसे पहले होती थी
अब नारी में वो बात नहीं।।

नशे में डूबी रहने वाली
महख़ानो में रहती है।
दिखावे की इस दुनिया में
दिखावे में ही जीती है।।
संस्कृति से कोई काम नहीं
यें सोचे आज की नारी।
गर्व होता इनको
जैसे छोटे कपड़ों में आज़ादी।।

क्युँ बदल गया ये वक़्त
कैसे बदल गये लोग।
छोटे हुए कपड़े
या फिर छोटी हुई सोच।।

नये जमाने वाली माँ देती
बच्चों पर देती ध्यान नहीं।
अपराध को जो रोक सके
देती ऐसे संस्कार नहीं।।
ये ऐसी नारी है
जिसको परिवार की ही ना चिंता है।
अरे कैसी नारी है
जिसमे नारीत्व ही ना दिखता है।।

हाँ नारी तो वो जो होती थी
जो काल को भी मात दे।
अपने स्वामी के ख़ातिर
वो जो राजपाठ भी त्याग दे।।
दण्डवत प्रणाम है मेरा
उस विकराल सी नारी को।
खूब लड़ी मर्दानी
वो उस झाँसी वाली रानी को।।

वो उतरे जब मैदान में
तो खून की नादिया बहती थी।
और क्या ही हिम्मत होगी
उस रानी मैं जो ये कहती थी।।

के प्राण भले ही जाये
मेरे पर दामन पर ना दाग लगे।
मेरी देह की इच्छा रखते
जिनके हाथ मेरी ना राख लगे।।
वो रानी पद्मिनी थी
जिसने अग्नि में स्नान किया।
अपने पति के दर्जे पर
ना दूजे को स्थान दिया।।

वो एक सती सावित्री
जिसने यम से खींचे प्राण।
एक आज की नारी
जो ले जाती यम के द्वार।।
हे कलयुग की नारी तुम
अस्तित्व कैसे भूल गई।
पुरखों की मर्यादा से
तुम कैसे इतना दूर गई।।

क्यों भूल गई वो संस्कार
जिसमे जीने में मान हो।
क्यों भूल गई शृंगार
जिसमे हाथ में ना तलवार हो।।
हे मेरी माता बहनों
तुम संस्कृति के अब साथ चलो।
स्वयं को पहचानो
जिज़ाबाई जैसी मात बानो।

अरे वो भी नारी ही थी
जिसने छत्रपति तैयार किया।
वो हाड़ी वाली रानी
जिसने शीश थाल में सजा दिया।
वो पन्नाधाय जो
राजहित में पुत्र का बलिदान दिया।
नारी बनो वैसी
जिसने महाराणा प्रताप बना दिया।

क्यूँ लगी हो नशे में तुम
क्यों कच्चे वाले प्रेम करो।
तुम प्रेम यदि करना चाहो
तो मात सती सा प्रेम करो।।
कर्म यदि करना चाहो
तो सीते माँ सा कर्म करो।
जो साथ रहे वन में भी
ऐसे धर्म सा सत्कर्म करो।।

हे नारी बदलो ख़ुद को तुम
संस्कृति की भी लाज रखो।
संसार तुम्हारे हाथों में
अब मर्यादा का मान रखो।।
प्रेम का स्वरूप हो तुम
विश्व जगत की जननी हो।
अर्धांगिनी कहलाने वाली
तुम ही जीवन संगिनी हो।।

मेरी मंशा अंतिम बात से
कुछ सीख तुम्हें सिखाने की।
नतमस्तक है याचना
जरा सोचो इसे निभाने की।

ग़ैर मर्द को हे नारी
ना सोचो मित्र बनाने की।
पति की बाते टालकर
ना मानों सीख जमाने की।।
अरे गया द्वापर जब
द्रौपदी के सखा कृष्ण होते थे।
ये कलयुग है माता बहनों
यंहा मर्द सखा ना होते है ।।
यंहा मर्द सखा ना होते है ।।

वीर हनुमाना लिरिक्स

(लवनिश खत्री)

वीर हनुमाना लिरिक्स (लवनिश खत्री)
वीर हनुमाना लिरिक्स (लवनिश खत्री)

Singer - Lovenish Khatri
Music - LK Musical Studio
Lyrics - Traditional

वीर हनुमाना लिरिक्स

(लवनिश खत्री)

आइये आपको प्रभु के और समीप ले चलूँ
वीर हनुमाना अति बलवाना
वीर हनुमाना अति बलवाना
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
वीर हनुमाना अति बलवाना
वीर हनुमाना अति बलवाना
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे

जो कोई आवे अरज लगावे
जो कोई आवे अरज लगावे
सबकी सुनियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
वीर हनुमाना अति बलवाना
वीर हनुमाना अति बलवाना
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे

बजरंग बाला फेरू थारी माला
बजरंग बाला फेरू थारी माला
संकट हरियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
वीर हनुमाना अति बलवाना
वीर हनुमाना अति बलवाना
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे

ना कोई संगी हाथ कि तंगी
ना कोई संगी हाथ कि तंगी
जल्दी हरियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
वीर हनुमाना अति बलवाना
वीर हनुमाना अति बलवाना
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे

अर्जी हमारी मर्जी तुम्हारी
अर्जी हमारी मर्जी तुम्हारी
कृपा करियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
वीर हनुमाना अति बलवाना
वीर हनुमाना अति बलवाना
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे

रामजी का प्यारा सिया का दुलारा
रामजी का प्यारा सिया का दुलारा
संकट हरियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
वीर हनुमाना अति बलवाना
वीर हनुमाना अति बलवाना
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
वीर हनुमाना अति बलवाना
वीर हनुमाना अति बलवाना
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे
राम नाम रसियो रे
प्रभु मन बसियो रे.....

कलयुग का मानव लिरिक्स

कलयुग का मानव लिरिक्स
कलयुग का मानव लिरिक्स

Rap and Lyrics by - LUCKE

कलयुग का मानव लिरिक्स


मैं धूम्रपान का आदि हुँ ,
भोले को भांग चढ़ाता हूँ
प्रशाद में चढ़ाई भांग को
फिर मैं ही लेके जाता हुँ।
फिर यार दोस्त बुलाता हूँ
ऐसा माहोल बनाता हूँ
चिलम में भरके माल को
महफ़िल में ही खो जाता हूँ।।

मंदिर तो आता जाता नहीं,
ना पूजा ना में जाप करूँ
ना भगवद् गीता जानू में ,
क्यूँ रामायण का पाठ करूँ।
(हाँ) तिलक लगाकर मस्तक पर
कभी कभी धर्म की बात करूँ
और प्रशंशनीय बनने को
दिखावे का राम राम करूँ।।

जाने ऐसा क्यूँ हूँ मैं
ना सुधारने का प्रयास करूँ
शनि मंगल को छोड़कर
मैं कभी भी मदिरापान करूँ।
मैं वही हूँ यारो
जो खुलके बाज़ार में लड़की घूरता
मंदिर में बैठी माता को
मैं देवी समझ के पूजता।।

जब बाहर जाती बहन तो
मैं सदा जाने से रोकता
माहोल थोड़ा गंदा है
मैं बात बात पर टोकता।
पर रोकूँ ना मैं ख़ुद को कभी
जब ख़ुद आँवरा घूमता
मैं ख़ुद कभी ना सोचूँ कभी
परनारी को जब देखता।।

मैं अपनी मां को मां मानुं ,
बहना को गहना मानुं मैं
पर बात पराई की आये
तब ना किसी का कहना मानुं मैं।
यदि अत्याचार हो स्त्री पर,
मोमबत्ती में भी जलाता हूँ
दुनिया को बदलना चाहुँ मैं
पर बदलना ख़ुद को पाता हुँ।।

मैं मज़े मज़े में कभी कभी
थोड़ी गाली भी दे देता हूँ
पर यदि मूझे दे कोई तो
मैं ख़ुद कभी ना सहता हुँ।
उस पुतले वाले रावण को
हर बरस मज़े से जलाता हूँ
भीतर में बैठे रावण को
मैं सदा सुरक्षित पाता हूँ।।

परिवार पशु का खाकर
मैं ख़ुद चैन की नींद सोता हूँ
यदि अपना कोई मर जाये तो
मैं फुठ-फुठ कर रोता हूँ ।
बकरा मुर्ग़ा मछली को
मैं बड़े शौक़ से खाता हूँ
जब बात आएगी गौ माता की
पशु प्रेमी बन जाता हूँ।

इंसान नहीं हैवान हूँ मैं
जो जानवर खा जाता हूँ
मुर्ग़े की टंगड़ी मुख में रख,
कुत्ते पर प्रेम दिखाता हूँ।।
मेरे लंबे लंबे दांत नहीं
ना पूरा पूरा दानव हूँ
इंसानी वेष में दिखता हूँ ,
मैं तो कलयुग का मानव हूँ।।
मैं तो कलयुग का मानव हूँ।।
मैं तो कलयुग का मानव हूँ।।

मेरे ही जैसो के कारण
आज गंदा ये समाज है
मेरे ही जैसो के कारण
आज होते सारे पाप है।
मेरे ही जैसो के कारण_
नारी आज लाचार है
मेरे ही जैसो के कारण_
बढ़ता दुराचार है।।

मैं ऐसा ही हूँ यारों
मुझसे ज़्यादा ना तुम बात करो
यदि मिलना चाहो मुझसे तो
तुम भीतर अपने झाँक लो।
तुम झाँको अंतर्मन में
तुम सारे ही ऐसे दिखते हो
भीतर से मन के मैले हो
सब व्यर्थ दिखावा करते हो।।

तुम काली माँ के नाम पर_
पशुबलि दे देते हो
और सारे मांस को साथ में
सब मिल बाँट के खाते हो।
घर से भरकें कचरे को
तुम नदी में फेंक जाते हो
फिर लौटा भरकें गंगाजल को
घर में लेके आते हो।।

ये कैसी तुम्हारी नीति है,
तुम जाने कैसे ज्ञाता हो
ईश्वर को भी ना छोड़ा तुमने
विश्व के विधाता को।
धुएँ से जोड़ा भोले को_,
रक्त से काली माता को
मदिरा से जोड़ा भैरव को,
कर दिया कलंकित दाता को।।

सब सारे उल्टे कर्म करते
लेके धर्म के नाम को
धीरे धीरे बदनाम करते
सनातन की शान को।

अरे सनातन तो वो है
जो महिला का मान सिखाता है
इंसानों में इंसानियत
यहाँ कोई ना मांस खाता है।
सब दया भावना रखते है
पशुप्रेम किया जाता है
आदर से देखे बहनों को
नारी को पूजा जाता है।।

नारी के रक्षण हेतू
यहाँ मुण्ड काट दिये जाते है
रामायण महाभारत
महा संग्राम किए जाते है।
हाँ सनातन तो वो है
जो कण कण की पूजा करता है
लगाव रखे हर प्राणी से
हर जीव की रक्षा करता है।।

पर देखो इस समाज को
अब कैसी इनकी सोच है_
जीव का भक्षण करके
किंचित् करते ना संकोच है।
दया भावना रखो यारों
है विनती मेरी समाज से
जो सुन रहा इस गीत को
वो बदल लो ख़ुद को आज से।।

समाज बदल नहीं सकता
मैं ख़ुद को बदल तो सकता हूँ
तो क्यूँ ना बदलूँ आज से
जब आज ही कर सकता हूँ।
परमात्मा का अंश हूँ
जो चाहुँ वो कर सकता हूँ
सब छोड़के सारे बुरे कर्म
लो मानवता पर चलता हूँ।।

क्यूँ इंतज़ार करे हम सब
श्रीकृष्ण के अवतार का
सब मिलकर हम निर्माण करे
नव-सतयुग से समाज का।
जहाँ पशु को पूजा जाता हो
और मांस कोई ना खाता हो
हर मानव में मानवता हो
ना मानवता दिखावा हो।।

रावण बनाम राम लिरिक्स

(LUCKE)

रावण बनाम राम लिरिक्स	(LUCKE)
रावण बनाम राम लिरिक्स(LUCKE)

Lyrics and Rap by LUCKE
Music & Mixing by Cherrysingh

रावण बनाम राम लिरिक्स

(LUCKE)


लंका में लंकापति की इच्छा
यदि कोई स्वेच्छा से पूरी नहीं करता
तो लंकापति स्वयं अपने बल से
अपनी इच्छा पूरी करना जानता है
हा... हा.. हा.. हा.. हा.....

रावण हू मैं रावण
मुझसे बलशाली ना कोई यहाँ
रणभूमि में लड़ सके जो
वीर ऐसा ना कोई हुआ

बड़े बड़े शूरवीर भी
सामने ना आते हैं
राहु केतु और शनि भी
नाम से घबराते है

कुम्भकर्ण के खौफ से
ये पास कभी ना आते हैं
हुंकार से उसकी दूर से ही
सब काँपके मर जाते हैं

मेघनाथ सा शक्तिशाली
कोई नहीं इस लोक में
शक्तियों के चर्चे तो
होते हैं परलोक में

इन्द्र जैसे देवता भी
मेघनाथ से हारे है
सामने उसकी ताकत के ये
सारे ही बेचारे हैं

मार सके जो कोई मुझे
वीर यहाँ न धरती पे
मैं लंका का लंकेश हूँ
प्रकोप से दुनिया डरती है

वनवासी वो राम मेरा यहाँ
कुछ भी ना कर सकता है
शांत सा स्वभाव वाला
प्रचंड सेना से डरता है

सेना का ये रूप विशाल
सेना की गर्जन भारी है और
सारे युद्ध जीते मैंने
युद्ध कभी ना हारे है

सोने की लंका वाला हू जो
चाहे वो कर सकता हूँ
मैं रावण हूँ मैं रावण
ना सामने किसी के झुकता हूँ

ये पृथ्वी लोक मेरा है
यहाँ एकमात्र राजा मैं
मैं काल का भी काल हूँ
ना डरता किसी की माया से

वनवासी की पत्नी का भी
हरण किया मैंने छल से
कोई क्या ही बिगड़े मेरा
सब डरते मेरे बल से

असत्य को चरम सीमा पे
पहुचना मेरा काम है
मैं लंकापति लंकेश हूँ
और रावण मेरा नाम है

तुम्हारा अंत आ चूका है
रावण इसी अवस्था का नाम दुर्दशा है

अब रूप मेरा प्रचंड देख
तरकश में मेरे बाण देख
नाभी में तेरी जान देख
मेरे हाथ में तेरे प्राण देख

अब जलती हुई तेरी लंका देख
तू तेरा सर्वनाश देख
बिखरा तेरा परिवार देख
रणभूमि को तू लाल देख

कुम्भकर्ण का काल देख
मृत्यु तेरी अकाल देख
तू मेघनाथ का हाल देख
असत्य की तू हार देख

तेरी प्रजा की गुहार देख
शया पर लेटी जान देख
तू देख बस क्या होता है
मेरी माया का जाल देख

मैं वनवासी हूँ कोई ना
लंका सोने की राख देख
आँखों में मेरी धरती है
मेरे पैर तले पाताल देख

ग़लती करदी रावण तूने
वनवासी मुझे मान के
मैंने ही भेजा धरती पर
तेरी देह में प्राण डाल के

शांत मेरा स्वभाव तो क्या
मैं मर्यादा में रहता हूँ
तुझे लग रहा मैं भोला सा
मैं हर बात ही सहता हूँ

प्राणों से भी प्रिय मेरी
सीते का तूने हरण किया
जीवन के सारे कर्मो में
ये कर्म तो तूने गलत किया

अब देख तेरी क्या दुर्दशा
तू तेरा सब कुछ खो देगा
भीख माँग के प्राणों की
तू फूट फूट कर रोएगा

तू याद करेगा काश
मुझसे होती ना ये गलती
अहंकार में डूबा तू
जल्दी मांगेगा माफ़ी

पल मैं टूटे अहंकार तेरा
सर्वनाश तो निश्चित है
ना माफ़ी के भी लायक तू
ना लायक है तू प्रायश्चित के

नारी के अपमान से बड़ा
ना पाप यहाँ इस धरती पे
मैं माफ करूँ तो कैसे करूँ
तूने कर दी बड़ी ही गलती रे

हे राम... हे राम... हे राम....
हे राम... हे राम... हे राम.....

दुर्भाग्य द्रोपदी का

हिंदी रैप लिरिक्स

दुर्भाग्य द्रोपदी का हिंदी रैप लिरिक्स
दुर्भाग्य द्रोपदी का हिंदी रैप लिरिक्स

Rap By - Lucke
Music and mix master by - Mitwan soni
Flute- Lakshya Chourasia
Chorus- Jatin Sharma & Mehndi Birla

दुर्भाग्य द्रोपदी का

हिंदी रैप लिरिक्स


महाराज ..!
हस्तिनापुर की राजसभा में
ये किस प्रकार का व्यवहार हो रहा है ?
मैं इस सारी सभा से प्रश्न करती हूँ
ये किस प्रकार का धर्म है ?
उत्तर दीजिए ! मौन मत रहिये
वो धर्म ही क्या...
जो शक्ति को निर्बलता बना दे
वो सत्य ही क्या...
जो दुष्टों के कार्यों को भस्म करने के बदले
बोलने वाले के साहस को ही जला दे

Rap Lyrics...

है गांडीव तुम्हारा मौन क्यूं,
है गदा भीम की शांत क्यूं ।
दिखती ना ज्वाला आंखों में,
है नेत्र तुम्हारे मौन क्यूं ॥

कुछ तो बोलो महारथियों,
ऐसे कौन सताना चाहेगा ।
भीख मांग रही ये द्रौपदी,
कौन लाज बचाने आएगा ॥

हे कृष्ण बचाओ कृष्णा को,
ये चीर को मेरे चीर रहे ।
तन पर लिपटा है वस्त्र एक,
उसे निर्दयी कौरव खींच रहे ॥

देखो आंखों देखा हाल मेरा,
घटित घटना का विवरण ।
ऐसी क्या विप्पति आई,
क्यूं घटा महाभारत का रण ॥

उस भरी सभा का देख दृश्य ,
रूहे तुम्हारी कांपेगी ।
ये ध्रुपद कन्या द्रौपदी,
वहां अपना गौरव हारेगी ॥

दुर्योधन बोला भरी सभा में
दासी को आदेश करो ।
हां केश पकड़ कर पांचाली के 
सामने मेरे पेश करो॥ 

दुशासन खींचकर लाओ अभी
इंद्रप्रस्थ की पटरानी को ।
जंघा पर ला बैठाओ
अभी निर्वस्त्र करो पांचाली को ॥

उस भरी के चौसर में
ये कैसा अनर्थ कर डाला ।
हे धर्मराज के पुत्र तुमने
क्यूं मुझ पर दाव लगा डाला ॥

जब हार गए थे खुदको ही तो
मुझ पर ना अधिकार बचा ।
जब कौरव चीर को खींच रहे तब
एक ना मुझको बचा सका ॥

किस काम के मेरे पांच पति
जो लाज मेरी ना रख पाए ।
किस काम के हो गांडीवधारी
क्यूं चीख मेरी ना सुन पाए ॥

मछली का नेत्र भेद कर
स्वयंवर से ब्याह के लाए हो ।
गांडीव को धारण करने वाले
तुम क्यों शीश झुकाए हो ॥

अरे उठाओ अपना गांडीव अभी
और कार्य करो कुछ गौरव का ।
जैसे भेद दिया मछली का नेत्र
भेद दो सारे कौरव का ॥

हे भीम उठाओ गदा तुम भी 
दिखा दो अपना शौर्य सभी ।
डगमग डगमग हिल जाए अभी
धर्तराष्ट्र का सिंहासन भी ॥

मैं कहती हूं फिरसे सबसे,
बचालो लाज कुरूवंश की ।
हे पितामाह कुछ बोलो,
मैं कुलवधु तुम्हारे वंश की ॥

तुम तो कुछ बोलो गुरु द्रोण,
तुम ऐसे चुप्पी ना साधो।
कब तक करोगे धारण मौन,
धनुष उठाओ प्रतंचया बांधो ॥

शस्त्र सारे छोड़े के,
मर्यादा अपनी लांघ रहे ।
भीषण दुष्कर्म देख के,
मृत्यु अपनी पुकार रहे  ॥

कैसी नपुंसकता आई है
क्यूँ मर्द बने नामर्द यहां ।
सब क्यूं व्यर्थ लाचार बने
नारी का दर्द ना दिखा यहां ॥

साम्राज्ञी हस्तिनापुर की थी,
पल में दासी बना डाला।
चौसर में पकड़े पासो को,
युद्ध में पकड़ते थे भाला ॥

क्यूं ऐसा मेरे साथ हुआ,
मां कुंती ने मुझे बांट दिया।
हे भगवन मेरे जीवन में
ये कैसा तूने न्याय किया ॥

ना खेली चौसर क्रीड़ा मैं,
ना ही मैंने कोई पाप किया।
फिर मैं ही क्यों हूं पीड़ा में,
ये कैसा तूने इंसाफ किया ॥

मैं चीख चीख कर थक गई
कोई सुनता मेरी पुकार नहीं।
हे गोविंद तुम ही लाज रखो
मानहानि मुझे स्वीकार नहीं ॥

जब द्वापर में ये घटना घटी तो
सभी वीर बैठे है मौन।
कलयुग में ऐसा होगा तो
माधव वहां आएगा कौन ?

कौन रखेगा मान वहां
किस से होगी आस मेरी।
स्त्री का शौषण प्रतिदिन
तब कौन रखेगा लाज मेरी ॥

हे कृष्ण बची है आस नहीं
तुम ही बचाओ कृष्णा को ।
मान मेरा वापस लाकर(हां)
शांत करो मेरी तृष्णा को ॥

कष्ट हिंदी रैप लिरिक्स

(LUCKE)

कष्ट हिंदी रैप लिरिक्स  By LUCKE
कष्ट हिंदी रैप लिरिक्स  By LUCKE


Rap and Lyrics by - LUCKE
Prod. By - Keman
Mix and mastered by - CJ Chirag

कष्ट हिंदी रैप लिरिक्स

(LUCKE)


मैं कृष्ण तुम्हारी राधा
एक प्रेम की परिभाषा
मैं सुनाती हूं आज
अब तो लौट आओ कान्हा ।
कैसा होता है त्याग ,
कैसा होता है प्रेम
मैं बताती हूं आज
सुनके लौट आओ कान्हा ॥

आ जाओ इक बारी
फिर ना लौट के ना जाना
यमुना के किनारे
श्याम मुरली धुन बजाना ।
तरस रहे कानो को
मीठी वाणी सुनाओ न
अरज तौसे इतनी सी
बस अब तो लौट आओ ना ॥

आके देखो मेरे श्याम
जरा यहां का भी हाल
गईया देखे राह तुम्हारी
गोपियां बेहाल ।
इनके आंसू लेते नहीं
अब ना सूखने का नाम
मैं क्या करू अब ऐसा
जिस से मिले इन्हे आराम ॥

झूठे दे देके दिलासे
अब मैं थक चुकी हूं आज
सुन लो मेरी विनती
अब तो लौट आओ श्याम ।
ऐसी क्या मजबूरी है
जरा हमको भी बताओ ना
धर्म युद्ध तो खत्म हुआ
फिर अब तो लौट आओ ना ॥

हम तो जानते है
मोहन पूरा आपका भी त्याग
सब कुछ तुमने छोड़ दिया
कुछ भी ना रखा पास ।
बंसी भूले , यमुना भूले ,
भूले गोकुल ग्वालों को
फिर से आके देखो ना
एक तुम ही तो रखवाले हो ॥

अब दिल नहीं लगता यहां
पर किसी कोई काम में
माखन से भी जी भर गया
सूना सूना जहान है ।
हम सबका ऐसा हाल है
तुम जरा भी याद नहीं करते
ऐसे कैसे रह जाते हो
क्यूं थोड़ा विचार नहीं करते ॥

मैं मान नहीं सकती कान्हा
तुम्हे याद मेरी ना आती हो
रोज तरसते हो दीदार को
झूठी मुस्कान दिखाते हो ।
अधबुद्ध तुम्हारा धैर्य
पलको पर रोके आंसू को
यह सब कैसे कर लेते हो
सीखा दो गोकुलवासी को ॥

सब कब से आस लगा बैठे
पर तुम कभी ना आते हों
ये गईया सारी मौन है
किसी से दुख ना बांटे वो।
सबको छोड़ो मोहन
तुम यमुना खातिर आ जाओ ना
वो भी तो खामोश है
किनारे नहाने जाओ ना ॥

अब वो भी सहमी रहती है
धीरे – धीरे से बहती है
दर्द छुपा के बैठी वो
किसी से दुख ना कहती है ।
आ जाओ बस एक बार
फिर वापस जाने दूंगी नहीं
पर मेरे मुरली धर
तुम बस एक बार तो आओ ना ॥

कितने बदल गए हो तुम
अब राज्य को संभाले हो
वृंदावन को भूले हो तुम
कितने हिम्मतवाले हो ।
संभालते हो द्वारिका
क्यूं ब्रज की याद नहीं आती
पल में सबको छोड़ गए
क्या गलियां याद नहीं आती ॥

ये प्रियतमा तेरी याद में
अब दिन रात ना सोती है
मेरी भी थोड़ी लाज रखो
क्या मेरी याद नहीं आती ।
कैसी विपदा आई है
और कैसा मंजर सामने
नयन ढूंढ रहे है आपको
मिलन के इंतजार में ॥
सब दुविधा जाने आपकी
पर कष्ट मेरे ना जाने कोई
आंसू तो सबके सच्चे है
ना लगाते बहाने कोई ।
पीड़ा हरते दुनिया की
मेरे अश्रु क्यूं दिखते नहीं
अब बहते है निरंतर
मेरी आंखों से ये रुकते नहीं ॥

तुम युद्ध से परे होके
सुदर्शन को आराम दो
कुछ वक्त के लिए ही सही
पर बांसुरी को थाम लो ।
बरसो से तरसे कानो को
मीठी वाणी सुनाओ ना
और विलंब ना करो मोहन
तुम अब तो लौट आओ ना ॥

मेरी अंतिम स्वाशे बाकी है
जाने कब तक संसार में
प्राण देह से छूट रहे
और कितना करू इंतजार मैं ।
ये सूखे जाए आंसू
मेरे नैनो को सुखाओ ना
मेरी देह से निकले प्राण
उस से पहले मिलने आओ ना ॥

अब कामना केवल इतनी सी
बच्ची मेरी कोई आस नहीं
मुक्ति मिले संसार से
तब रहूं आपके पास में ।
आपकी गोद में हो मस्तक मेरा
हाथों में बांसुरी
आखिरी मेरी ख्वाइश है
कान्हा कर देना पूरी ॥

आखिरी मेरी ख्वाइश है
कान्हा कर देना पूरी ॥

Comments System