ब्रजवासी रैप लिरिक्स
ब्रजवासी रैप लिरिक्स |
Song: Brajwasi (ब्रजवासी )
EP (Extended Play): Brajwasi
Rap & Lyrics: Narci
Music: Narci
ब्रजवासी रैप लिरिक्स
हे मृत्यु, तभी आना
जब मैं वृंदावन की पावन रज में डूबा होऊं,
कविता में लीन होऊं
क्यूंकि तब तू एक संदेशवाहक बन कर आएगी
नारायण से मिलने का सुखमय निमंत्रण लेकर
माला को घुमाते, जिह्वा बस तेरा ही नाम गिने
जैसे ही ये शाम ढले, नैनों को मेरे श्याम दिखे
नाथ किसे मैं बोलूँ कि मैं मृत्यु की प्रतीक्षा में
वृंदावन या काशी, कहीं भी मेरे प्राण छिने
रोता क्यूँ है प्राणी तू ये नए जनम का वादन है
अर्थी को ये आसान कह लो या ये अंतिम वाहन है
मृत्यु न अमंगल है ये सत्य बड़ा ही पावन है
मृत्यु तो मेरे नारायण से मिलने का एक साधन है
मृत मिले जो काया मेरी, कलम हाथ ने धरी वो हो
पन्नों पे किताबों के छंद अधूरे हरि के हों
मृत मिले जो काया मेरी, लोग देख के बोलें ये
धाम हरि के जा चुके हैं, बोल लिखे थे कवि ने जो
वृंदावन में मृत्यु हेतु कौन भला न तरसेगा?
धड़कन खोके भी ये दिल वृंदावन में धड़केगा
प्रिय किशोरी जी से जब मिलने को दिल तड़पेगा
वृंदावन में उस दिन प्यारे दिल करेगा मरने का
भक्ति में मिल जाना है, बस इतना सा ही खेला है
पास तेरे तो बस प्राणी हाँ कर्मों का ही ठेला है
कंधे होंगे चार आख़िरी, जलना फिर अकेला है
मृत्यु तो राधा रानी से मिलने का एक मेला है
ग्लानि में तू बैठेगा जो कलि काल को सुनता मन
जो चली चाल हो मैली तूने तो करेगा चिंता मन
पर साफ़ हृदय से राधे जप के त्यागेगा तू प्राण तेरे
क्या पता मानव योनि में फिर आ जाए वृंदावन
राधा कुंड की शांति में,
बिहारी जी की पावन गलियों में,
यमुना तट के मंद हवा संग
वहीँ कहीं मैं हरि को समर्पित
अपना अंतिम छंद लिख रहा होऊंगा
और यदि उसी क्षण मित्यु आये
तो वह भी मेरे लिए प्रभु का ही निमंत्रण लगेगी
तन मेरा ये बंधन जो माया का एक दिन तोड़ गया
तो याद ये करना बात मेरी, न रोना था ये बोल गया
मुक्ति मुझको मिल जाएगी अर्थी को जो कह दोगे
दास हरि का पीछे लाखों बोल हरि के छोड़ गया
हरि यदि ये चाहेंगे तो गीत वहीं पे गाऊँगा
मैं जय, विजय और सब देवों को गीत मेरे सुनाऊँगा
हरि यदि ये कह देंगे कि जा वृंदावन फिर से तू
काया लेके नई नवेली फिर वापिस आ जाऊँगा
वृंदावन में मृत्यु यानी मृत्यु का न भय रहे
मृत्यु को आलिंगन हेतु हँस के हम तो कह रहे
अंतिम क्षण में हंसता चेहरा स्वयं तुम्हें बता देगा
की श्रीहरि और हरिप्रिया मुझे दर्शन होंगे दे रहे
जन्म जो पीछे बीत गया क्या पता मैं ब्रज का वासी था
क्या पता मरा था वृंदावन या मरा मैं शिव की काशी था
नारायण से मिलने को मैं कई युगों से पागल हूँ
मैं अब भी मिलन चाहता हूँ, मैं पहले भी अभिलाषी था
दर्शन मेरे नारायण के आधे न रह जाएँगे
ये गीत मेरे ही नए जन्म में मुझको वापिस लाएँगे
दावा न मैं करता हूँ पर दिल मेरा ये कहता है
हूंगा मैं मौजूद धरा पे कल्कि जब भी आएँगे
कल्कि जब भी आएँगे ये गीत दोहराए जाएंगे
‘राम सेतु’ के श्रोता सारे फिर मिलने को आएँगे
कलि काल का अंत दिखेगा, हरि मेरे दिख जाएँगे
धर्म पताका ऊँची सारे सतयुग में लहराएँगे
वृन्दावन में मृत्यु नहीं, मिलन होता है।
जहाँ न भय, न शोक,
केवल परम आनंद
राधे राधे....
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