संघर्ष 2 कहानी गांडीवधारी अर्जुन की

संघर्ष 2 रैप लिरिक्स 

कहानी गांडीवधारी अर्जुन की 

संघर्ष गाथा गांडीवधारी अर्जुन की
संघर्ष गाथा गांडीवधारी अर्जुन की

Rap and Lyrics by - Lucke
Music - Smokey
Mix and master by - Aditya Badoliya
Dialogues dubbed by - Vishal Gupta

संघर्ष 2 रैप लिरिक्स 

कहानी गांडीवधारी अर्जुन की

सैनिकों.....
 ये किसके रथ के अश्व की पद ध्वनी है
जो हमें इतना विचलित कर रही है ??
महाराज...
यहाँ से ये दृश्य तो अत्यंत ही अद्भुत
और भयानक प्रतीत हो रहा है
चार श्वेत अश्वों वाले रथ पर
एक तेजस्वी योद्धा
जिसके हाथों में प्रलयंकारी धनुष
ध्वजा पर स्वयं मारुति
और उसके रथ की धुरा को
स्वयं नारायण... वासुदेव ने थाम रखा है
यह दृश्य महादेव के अतिरिक्त
किसी को भी भयभीत कर सकता है

गांडीवधारी अर्जुन...
महेश्वाशा धनंजय...
गांडीवधारी अर्जुन...
महेश्वाशा धनंजय...

चार श्वेत अश्व, रथ पे सवार
काँधे गांडीव ले साध कमान
उतरे रण में तो त्राहिमाम
भय से शत्रु के सूखे प्राण
बहा दे रण में रक्तधार
ना देखी उसने कभी हार
ललाट तिलक मुख तेज लिए
सारे चक्रव्यूह भेद दिए
शत्रु से ना प्रलाप करे
गांडीव की जब टंकार बजे

दिखे ना कोई चारों ओर
रणभूमि में संहार दिखे
युद्ध लड़े वो जमकर
रक्तपिपासु बनकर
प्रत्यंचा पर तीर चढ़े
हाँ खींचे प्राण वो हँसकर
रणभूमि में देख धनंजय
शत्रु की बढ़ती धड़कन
डरकर सेना सामने ही
कर देती पूर्ण समर्पण
उसका लक्ष्य कभी ना चुके
जब वो लेता तीर कमान
भेद दिया चिड़िया की और
स्वयंवर में मीन की आँख
उन तीर का ना कोई वेग दिखे
वो वायु गति से चलते थे
स्पर्श करे मानव की देह
पल में प्राण हर लेते थे
प्रचंड शौर्य ऐसा जिसको
देख कौरव अकुलाते थे
शत्रु प्रशंसा करते थे
अर्जुन जब तीर चलाते थे

अर्जुन की प्रतंच्या की टंकार सूनी नहीं तुमने??
जैसे स्वयं इंद्र का वज्र चल रहा हो....
ऐसा! आभास हो रहा था
अजय है वो....

संसार की कोई भी सेना
उस सेना को नहीं हरा सकती
जिसकी और से अर्जुन युद्ध कर रहा हो
अर्जुन जैसा धनुर्धर इस संसार में
ना कोई है ना ही भविष्य में कोई होगा

ले आँख अनल मुख तेज ललक
हर युद्ध में जिसने पायी विजय
वो महावीर वो महानायक
अतुल्य अजय वो धनंजय
शक्ति से शक्तिमान, क्या
उसकी भक्ति का अनुमान
केशव जिसके सारथी
ध्वजा पर हनुमान
कर शिव शंकर का ध्यान...
किया महादेव को भी आमोदित
रूप से इतना रूपवान
किया उर्वशी को मोहित

वो अर्जुन ही है जिसको
सर्वप्रथम गीता ज्ञान मिला
वो अर्जुन ही है जिसको
तप से पाशुपतास्त्र मिला
ब्रम्हाजी का गांडीव
गुरु द्रोणसे विद्या ज्ञान मिला
जीवन भर प्रयास से जिसने
इतना सब कुछ प्राप्त किया
दुर्भाग्य ऐसा जीवन का
सामर्थ्य को ना मान मिला
केशव ना होते सारथी
अर्जुन ना होता महारथी
निहत्ते कर्ण को मार दिया
ऐसे दुनिया धुत्तकरती
एकलव्य के उस कटे अंगूठे
का भी अर्जुन कारण है
अरे ! क्या संघर्ष किया अर्जुन ने
सब कुछ पाया विरासत में
भेंट में पाया गांडीव
केशव को महाभारत में

वास्तविक संघर्ष तो अंगराज कर्ण का ही था
अगर केशव साथ ना होते तो कर्ण के तीर
अर्जुन की देह से लहू का कतरा कतरा बहा देते
और उसका अस्तित्व ही मिटा दिया होता
एकलव्य का अंगूठा कटवाकर
अपने आप को वीर कहता है
एक निहत्ते को मारने में काहे की वीरता ??
राजवंश में जन्मे अर्जुन ने भला
कौन-सा संघर्ष किया था...

सबको लगता अर्जुन को
सब कुछ मिला विरासत में
मिला दुःख दर्द पीड़ा चिंता
गहन घटना से आहत में
अल्प आयु में ही मैंने
पिता का दाह संस्कार किया
कानन में बिता बचपन
फिर मैं राजमहल प्रस्थान किया
थे सौ भाई खड़े द्वार पर
मन में घृणा सब पाप लिए
अपने ही भाईयों ने हमको
अपने ही शत्रु मान लिए
किया छल कपट हर पल
हर क्षण हमपे आघात किया
परिवार सहित ही लाक्षागृह में
जलाने का प्रयास किया
फिर द्युत सभा में शकुनी ने
षड्यंत्र करके लिए शस्त्र
मैं वचनबद्ध मेरे समक्ष
मेरी पत्नी के हाँ खीचे वस्त्र
दिया एक वर्ष अज्ञातवास
बारह वर्ष वनवास गए
राजवंश में जन्म मिला
वन में ही जीवन काट गए

मैंने देखा ऐसा मंजर
अपने अपनों से अड़े हुए
मेरे पितामह मेरे गुरुदेव
सब समर भूमि में खड़े हुए
सब मुझसे ही लड़ने को
मेरा ही अंत करने को
गांडीव हाथ से छुट रहा
मैं सज्ज खड़ा मरने को
परिवार मारकर मिले राज्य
को कैसे स्वीकार करूँ ??
हाँ कैसे चिता सजा दूँ इनकी ??
कैसे नर संहार करूँ ??
आलिंगन देने को मुझको
छाती से लगाते थे
मेरे इन तीरों से कैसे
छाती पर इनके वार करूँ
मैं क्या करूँ क्या ना करूँ
विपक्ष का संहार करूँ

ये कैसा मंजर सामने
कैसे अंतिम संस्कार करूँ
मैं मेरे सब अपनों का
मैं व्यथित हाँ बैचैन हुआ
मार्गदर्शन मिला माधव से मुझे
मैं लड़ने को तैयार हुआ

युद्ध हुआ संग्राम हुआ
जनहानि हुई कई रक्त बहा
असंख्य देह अम्बार लगा
सोलह वर्ष के अभिमन्यु को
चक्रव्यूह में घेर अकेला
पीठ पे सबने वार किया
मिला दर्दनाक दुखदायी अंत
एक नहीं थे घाव अनंत
पुत्र रूप में देखा मैंने
अल्पायु में पिता अंत
पिता होक देखा मैंने
अल्पायु में पुत्र अंत
दुःख संघर्ष पीड़ा भोगी
पूरा जीवन काल में
किया अथक प्रयास मैं
फिर भी कहते लोग की
रण जीता अर्जुन ने क्यूँकि
स्वयं केशव थे साथ में
विराट युद्ध संग कोई नहीं
मैं अकेला मैदान में
कई महारथी सामने
उठा गांडीव को हाथ में
एक एक कर परास्त किया
हाँ महाभारत में......

केशव थे साथ में क्यूँकि
मैं धर्म के मार्ग पे
और बात रही अंगराज को
ना मारने का ना मर्म था
अपशब्द कहे मेरी पत्नी को
तो मारना मेरा धर्म था
रथ का पहिया धंसा भूमि में
साथ ना उसके छल था
अभिमन्यु संग जो छल किया
उस छल का मिला वो फल था

गांडीवधारी अर्जुन...
महेश्वाशा धनंजय........

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